November 24, 2024

ईश उपनिषद (Isha upanishad) #वेद #गीता

ईशोपनिषद् यजुर्वेद के चालीसवां अध्याय का हिस्सा है। 108 उपनिषदों की श्रेणी में ईशावास्योपनिषद् को प्रथम स्थान प्राप्त है। ईशावास्योपनिषद् का  तात्पर्य है: ज्ञान द्वारा मोक्ष प्राप्त करना ।

इसमें केवल 18 मंत्र हैं।

इन अठारह श्लोक के हर एक शब्द में ऐसा लगता  है, मानों ब्रह्म-वर्णन, उपासना, प्रार्थना की झन-झन की देवीय  ध्वनि उत्पन्न हो रही हो । इसके  एक शन्ति पाठ में ही  वेदांत का निचोड़,  ब्रह्म का सम्पूर्ण ज्ञान  समाहित है । इसी शांति पाठ के अर्थ के बारे में  विचार करते हैं।

॥शान्तिपाठ ॥

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

Rough English  translation of the above is as under:

“That is full, this is full,
From that fullness comes this fullness,
If you take away this fullness from that fullness,
Only fullness remains”

           

 यह मंत्र  ईश उपनिषद का  शांति पाठ के रूप में जाना जाता है। यह परम परमात्मा के निराकार स्वरूप की ओर संकेत करता है। वह परम परमात्मा जिसने इस सृष्टि की रचना की है, वह परमात्मा अनंत है, परिपूर्ण है। हम जिस  ईश्वर की पूजा मूर्ति रूप से करते हैं, वह उस  परम पिता परमेश्वर का चिह्न है। शिव को परमात्मा की आदि शक्ति का चिह्न स्वरूप माना जाता है। इस शांति पाठ के अर्थ को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:

वह परमात्मा जो दिखाई नहीं देता है, वह अनंत है, वह पूर्ण है, वह सर्वाधार है।

इस ब्रहमांड की उत्पत्ति उसी परमात्मा से हुई है। इसलिए यह जगत, यह ब्रहमांड भी पूर्ण है, अनंत हैं।

पूर्ण परमात्मा से इस पूर्ण जगत या ब्रह्मांड का उदय होता है, वह परमात्मा फिर भी पूर्ण रह जाता है।

इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जिस प्रकार से सागर में से यदि एक टैंक पानी निकाल दिया जाता है तो सागर पूर्ण ही रहता है। उसकी पूर्णता में कोई कमी नहीं होती है।

इसी प्रकार से मनुष्य की आत्मा भी परमात्मा का अंश है। वह भी पूर्ण है। परंतु मनुष्य शरीर रुपी चोले को ही स्वंय भू मान लेता है, उसकी जरुरत को महत्व देता है, उसी से उसको जिन्दगी भर अपूर्ण्ता का अनुभव होता है। यही अपूर्ण्ता का अनुभव मानव के सारे दुखों का कारण बनता है। इसलिए हमें इस अपूर्ण्ता के  अनुभव को समभाव से दृष्टा बनकर देखना चाहिए और स्वंय को आत्मन स्वरूप समझकर soul consciousness को ग्रहण करना चाहिए। तभी हमें अपनी पूर्णता का  बोध होगा और हम उस पूर्ण परमात्मा को समझ पायेंगे।
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Bhandari.D.S.

Bhandari.D.S.

He is a passionate inspirational writer. He holds Masters degree in Management and a vast administrative and managerial experience of more than three decades. His philosophy : "LIFE is Special. Be passionate and purposeful to explore it, enjoy it and create it like an artefact".

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