November 24, 2024

राष्ट्र कवि -मैथिली शरण गुप्त की दो कविताएं #maithilisharangupta

1) आर्य-हम कौन थे

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है

यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े

वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में

वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे

2) नर हो, न निराश करो मन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को
……………….
……………….
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।

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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी हिंदी साहित्य के इतिहास और खड़ी बोली के जाने माने कवियों में से एक थे। इनके द्वारा लिखी गई “भारत भारती” ने भारत के स्वंत्रता संग्राम के समय लोगों को प्रेरित किया। जिसके कारण महात्मा गाँधी ने इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया और इनकी जयंती ,3 अगस्त को कवि दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।मैथिलीशरण गुप्त जी को सन 1953 में भारत सरकार द्वारा “पद्मभूषण” से सम्मानित किया गया। गुप्त जी सन 1952-64 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इनके द्वारा लिखी गई कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ इस तरह है –रंग में भेद ,जयद्रथ बध ,पंचवटी , भारत भारती, साकेत ,यशोधरा ,हिन्दू ,नहुष.!

आशा है आपको दोनों कविताएं पसंद आयी होंगी।इस बारे में अपने विचार या इससे सम्बधित अनुभव हमें बताएं। इसके लिए comment में जाएं या हमारी ईमेल आईडी,: igyansetu@gmail.com पर मेल भेजें।
आप जीवन में सफ़ल हों।
सस्नेह आपका

#Bhandari.D.S.

Bhandari.D.S.

Bhandari.D.S.

He is a passionate inspirational writer. He holds Masters degree in Management and a vast administrative and managerial experience of more than three decades. His philosophy : "LIFE is Special. Be passionate and purposeful to explore it, enjoy it and create it like an artefact".

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