#jaishankarprasad
सब जीवन बीता जाता है
धूप छाँह के खेल सदॄश
सब जीवन बीता जाता है
समय भागता है प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में,
हमें लगा कर भविष्य-रण में,
आप कहाँ छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है
बुल्ले, नहर, हवा के झोंके,
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है
वंशी को बस बज जाने दो,
मीठी मीड़ों को आने दो,
आँख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है
सब जीवन बीता जाता है.
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सब जीवन बीता जाता है – नामक कविता में जयशंकर प्रसाद जी बताते हैं कि जीवन की उधेड़बुन में मनुष्य उलझा रहता है और अनमोल जीवन बिता चला जाता है।समय पंख लगाकर उड़ा जाता है और मनुष्य भविष्य के सपनों को साकार करने की जोड़ तोड़ में जीवन व्यतीत हो जाता है।