हम दें उसको विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो,
हो खड़े लोग कटिबद्ध यहां यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहां समर में ?
जो जहां कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करे पाप शशि सूर्य, उन्हें टोको रे !
जा कहो ,पुण्य यदि बड़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में ;
तामस बढ़ता ही गया ढ़केल प्रभा को ,
निर्बंध पंत यदि मिला नही प्रतिभा को ,
रिपु नहीं ,यहीं अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा,
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उपरोक्त कविता के अंश दिनकर जी के काव्य ,”परशुराम की प्रतीक्षा” से हैं।
राष्ट्र कवि दिनकर वीर रस के लिए जाने जाते है। वो कभी एक विद्रोही कवि के रूप में भी दिखते हैं। वो किसान, गरीब, मेहनतकश लोगों के हित के लिए शासन को ललकारते भी दिखते हैं।आप से निवेदन है कि आप भी दिनकर जी को पढ़े।
सस्नेह आपकाl
Bhandari.D.S.