November 24, 2024

How to be real KARAM YOGI (man of true action) as enumerated in Bhagvad Gita? #karamyogi #bhagvadgita

जब भी कर्म की बात होती है तो हमारे दिमाग में श्रीमद्भगवद्गीता का निम्न शलोक याद आता है:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥

उपरोक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण यह बताते हैं कि कर्म करना ही हमारा एक मात्र अधिकार है।
हमें अपने स्वधर्म के अनुसार अपना लक्ष्य तय करना चाहिए। उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कर्म करते समय फल की चिंता न करें क्यूंकि इससे आपका focus process से हट जाता है। कर्म पर फोकस करने से आप end result या फल पा सकते हो।
पर यदि फल पर conentrate करोगे तो process से ध्यान हटेगा और आप end result achieve नहीं कर पाओगे।
So key to success is Focus on Process and Practice practice your process till you achieve perfection.

कर्मयोगी शब्द कर्म + योगी से मिलकर बना है।
श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में स्पष्ट कहा है – हे अर्जुन जो व्यक्ति आसक्तिरहित होकर काम-भावना को वश में रख निष्काम कर्म करता है वही सच्चा कर्म योगी है।

कर्म का मतलब है कार्य करना या क्रियाशील होना। यह क्रिया शारीरिक और मानसिक भी हो सकती है ।कर्म को अंग्रेजी में Action भी कहा जाता है ।गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि अक्रिया निषेध है। Inaction is prohibited. Action is essential characteristics of living being. हमारे कर्म या एक्शन कैसे हो ? यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस मनोभाव से कार्य कर रहे हैं ! कार्य को निष्पादित करते समय हमारी मनोदशा या मनोकामना किस प्रकार की है । जो हमारा कर्म है वह हमारे स्वधर्म के अनुरूप होना चाहिए । जैसे कि क्षत्रिय का स्वधर्म है कि धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना। कर्म करते समय जो मनो दृष्टि होती है उसके अनुसार कर्म के निम्न तीन प्रकार है:

1- विकर्म : ऐसा कर्म जो कि शास्त्र एवं समाज की मान्यताओं के अनुसार वर्जित है। जैसे चोरी करना , झूठ बोलना, बलात्कार , हत्या करना आदि|

2- सकाम कर्म: इसमें हम कर्म तो स्वधर्म के अनुसार कर रहे हैं , परंतु वह कर्म हम फल की कामना से प्रेरित होकर कर रहे हैं। इसमें कार्य करते समय यह सोचते हैं कि इस कार्य का फल हमारे अनुरूप होगा या विपरीत होगा । जिससे कर्म करने की प्रक्रिया में हम पूरा ध्यान कार्य पर केंद्रित नहीं कर पाते।

3- निष्काम कर्म : यह सबसे उत्तम कर्म है और स्वधर्म के अनुरूप होता है इसमें कर्म का सही उद्देश्य भी होता है, परंतु इसमें फल की कामना के बिना कर्म करने की प्रक्रिया में बिना किसी आसक्ति के पूर्ण रूप से लीन ( full involvement) होकर कार्य को तत्परता और कुशलता से संपादित किया जाता है। फल मेरे अनुरूप होगा या नहीं होगा इस बात चिंता में अपनी शक्ति ,समय व सामर्थ्य को नष्ट नहीं किया जाता। एक सच्चा कर्म योगी स्वधर्म के अनुसार कर्म को निष्काम भाव से इन्द्रियों को वश में रख कर निष्पादित करता है। Karamyogi executes righteous action with full dedication and free from any desire while keeping all senses under control.

एक सच्चे कर्म योगी को निम्न बातों का कड़ाई से पालन करना चाहिए:

1-कर्म करना ही मेरा अधिकार है

2- अक्रिया पूर्णतया वर्जित है। यानी कि हमें आलस्य के कारण समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

3- हमें अपना पूरा ध्यान कार्य को पूर्ण करने में लगाना चाहिए । कार्य को पूरी कुशलता एवं लगन के साथ करना चाहिए।

4-कर्म करते समय हमें वह निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए। कार्य करते समय हमें किसी विशेष या निश्चित फल की कामना को मन में नहीं लाना चाहिए । इससे हमारी कर्म को कुशलता से संपादित करने की क्षमता में कमी आती है और हम फल की चिंता में अपना फोकस खो बैठते हैं।

5- सच्चा कर्म योगी भय मुक्त या चिंता मुक्त होकर अपना कर्म करता है, क्योंकि निष्काम कर्म करने से मनुष्य को संतोष और आनंद की अनुभूति होती है और वह अहम को भूल जाता है।

6- निष्काम भाव से कार्य करने के कारण हमारी इंद्रियां हमारे वश में रहती हैं।

आज के व्यस्त जीवन में हम यदि श्रीमद्भगवद्गीता के बताए कर्मयोग के मार्ग का अनुसरण करें तो हम जीवन में आने वाली विभिन्न शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। साथ ही अपने जीवन के लक्ष्य आसानी से पा सकते हैं और जीवन में परमानंद की अनुभूति को प्राप्त कर सकते हैं।

Bhandari.D.S.

Bhandari.D.S.

He is a passionate inspirational writer. He holds Masters degree in Management and a vast administrative and managerial experience of more than three decades. His philosophy : "LIFE is Special. Be passionate and purposeful to explore it, enjoy it and create it like an artefact".

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