- कबीरदास जी भक्तिकाल के महान कवियों में से एक हैं। संत कबीर अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे। भारतीय संस्कृति की रूढ़िवादिता एवं आडंबरों पर उन्होंने करारी चोट उनके साहित्य दने की है।महात्मा कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe) आज भी जनमानस के दिलोदिमाग में बसे हुए हैं एवं बहुत लोकप्रिय हैं।
- कबीर के दोहे
1.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।अर्थ :- संसार में तथाकथित विद्वान लोग सारी जिंदगी बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ते रहते हैं , परंतु फिर भी वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। कबीर मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर कोअच्छी तरह समझ ले यानि कि प्यार का वास्तविक रूप पहचान कर मानव जाति के प्रति समर्पित रहे तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।2.
हाड जले लकड़ी जले जले जलावन हार ।
कौतिकहारा भी जले कासों करूं पुकार ॥अर्थ :- मनुष्य की मृत्यु के बाद दाह संस्कार में हाड़ मांस जलता हैं ,उन्हें जलाने वाली लकड़ी भी जलती है । एक दिन उनमें आग लगाने वाला भी जल जाता है। समय के साथ उस दृश्य को देखने वाले लोग भी एक दिन जल जाते है। जब सब का अंत यही हो तो , किससे गुहार करूं – विनती या कोई आग्रह करूं? सभी की एक ही नियति हैं ! सभी का अंत एक समान है !
3.
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।अर्थ :- कबीर कहते हैं कि किसी को छोटा समझकर उसका तिरस्कार या निंदा नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार एक छोटा सा तिनका जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि वही तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो वह अत्यंत गहरी पीड़ा प्रदान करता है !
4.
यह तन काचा कुम्भ है,लिया फिरे था साथ।
ढबका लागा फूटिगा, कछू न आया हाथ॥अर्थ :- यह शरीर एक कच्चा घड़ा की तरह है, जिसे तू नशवर समझकर उसका घमंड करता है ।जिस प्रकार जरा-सी चोट लगते ही घड़ा फूट जाता है, कुछ भी हाथ नहीं आया। वही हाल इस शरीर का भी है, न जाने कब यह समाप्त हो जाए।
5.
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।अर्थ :- वाणी एक अमूल्य रत्न है यदि हम इससे अच्छे वचन बोलें, इसका सही इस्तेमाल करें। इसलिए हमें बात कहने से पहले उसे ह्रदय के तराजू में तोलना चाहिए और फिर मुंह से वचन बाहर निकालने चाहिए।
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